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Showing posts from May, 2025

Premanand Ji Maharaj: The Divine Journey of Vrindavan’s Humble Saint(प्रेमानंद जी महाराज: वृंदावन के सरल संत की अद्भुत कथा)

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प्रेमानंद जी महाराज: वृंदावन के आध्यात्मिक दीपस्तंभ प्रेमानंद जी महाराज , जिनका जन्म 1969 में उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के अखरी गाँव में हुआ था, आज वृंदावन के एक प्रमुख संत और गुरु के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनका जीवन त्याग, तपस्या और भक्ति का प्रतीक है, जो आज भी लाखों भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। 🌱 प्रारंभिक जीवन और सन्यास प्रेमानंद जी महाराज का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता, श्री शंभू पांडे, ने बाद में सन्यास लिया और माँ, श्रीमती रमा देवी, धार्मिक कार्यों में संलग्न रहीं। घर में भगवद्भक्ति और धार्मिक अनुष्ठानों का वातावरण था, जिसने उनके भीतर बचपन से ही आध्यात्मिक प्रवृत्तियों को जन्म दिया। 13 वर्ष की आयु में उन्होंने सांसारिक मोह-माया से दूर होकर सन्यास लेने का संकल्प लिया और "आनंदस्वरूप ब्रह्मचारी" के नाम से प्रसिद्ध हुए। बाद में, उन्होंने "स्वामी आनंदाश्रम" के नाम से भी पहचान बनाई। 🛕 वाराणसी से वृंदावन की यात्रा वाराणसी में गंगा के किनारे एक बरगद के पेड़ के नीचे ध्यान करते समय, प्रेमानंद जी महाराज को वृंदावन के प्रति आकर्षण ह...

Government Museum Mathura ( मथुरा का राजकीय संग्रहालय )

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मथुरा संग्रहालय: भारत की प्राचीन मूर्तिकला धरोहर का अद्भुत कोष  पावन नगरी मथुरा में स्थित राजकीय संग्रहालय  ( गवर्नमेंट म्यूज़ियम), मथुरा भारत के गौरवशाली अतीत का जीवंत दस्तावेज़ है। 1874 में अंग्रेज़ कलेक्टर सर एफ. एस. ग्राउस द्वारा स्थापित यह संग्रहालय प्राचीन भारतीय मूर्तिकला और पुरातात्विक धरोहर के सबसे समृद्ध संग्रहों में से एक है। एक संग्रहकर्ता के जुनून से जन्मा संग्रहालय सर ग्राउस, जो मथुरा जिले के तत्कालीन कलेक्टर थे, मथुरा की खुदाई में प्राप्त हो रही ऐतिहासिक वस्तुओं से अत्यधिक प्रभावित थे। उन्होंने इन्हें संरक्षित करने के उद्देश्य से संग्रहालय की नींव रखी, जिसे पहले कर्ज़न पुरातत्व संग्रहालय कहा जाता था। स्वतंत्रता के बाद इसे सरकारी संग्रहालय, मथुरा का नाम दिया गया। मथुरा: एक प्राचीन सभ्यता की भूमि प्राप्त एवं संगृहीत ज्ञात साक्ष्यों के अनुसार मथुरा का ऐतिहासिक महत्व 2500 वर्षों से भी अधिक पुराना है। यह नगर मौर्यकाल से लेकर कुषाण और गुप्तकाल तक राजनीतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। यह न केवल हिन्दू धर्म का तीर्थ स्थल है, बल्कि जै...

The Glorious History of Mathura: From Ancient Legends to Modern Pilgrimage ( मथुरा का गौरवपूर्ण इतिहास)

मथुरा का गौरवपूर्ण इतिहास प्रस्तावना  : यमुना के किनारे बसा ये मथुरा नगर प्राचीन, समृद्ध और महत्त्वपूर्ण है। आज भारतवर्ष के उत्तरप्रदेश राज्य का यह एक प्राचीनतम और पवित्र नगर है। मथुरा को भगवान श्री कृष्ण के जन्मस्थान के रूप में जाना जाता है जो लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व हुआ था ऐसा वर्णित है। मथुरा का इतिहास 5000 वर्षों से अधिक पुराना है और यह आज भी करोड़ों भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। आज मथुरा जिस स्वरुप में है पहले ऐसा नहीं था।  हालाँकि यह कला, राजनीति, व्यापारिक और आध्यात्मिक रूप से प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण रहा है। हमारी पुरानी पोस्ट में भी बताया गया है कि मथुरा समय-समय पर विभिन्न साम्राज्यों का मुख्य राजनीतिक, कला एवं सांस्कृतिक केंद्र रहा है।  धार्मिक नगरी तो यह है ही किन्तु ऐतिहासिक रूप से अलग अलग समय पर कई घटनाओं का साक्षी भी रहा है।  वैदिक काल: आस्था की जड़ें मथुरा का उल्लेख  महाभारत ,  रामायण  और  पुराणों  जैसे ग्रंथों में मिलता है। इसे प्राचीन  सूरसेन राज्य  की राजधानी कहा गया है। यही वह पवित्र भूमि है जहा...

Days before Pandemic (महामारी से कुछ दिन पहले )

परिवर्तन  का समय :  तेज गति से जीवन जीने की आदत और निश्चित दिनचर्या ही लोगों का एक मात्र उद्देश्य था। सप्ताह के छः दिन सुबह से शाम तक काम, कार्यालय के काम,घर के काम ,बच्चों के काम और रविवार के दिन छः दिन के बचे हुए काम। न सामाजिक मेलजोल, न जुड़ाव , किसी के लिए भी समय न होना। विशेषकर अपने लिए , क्योंकि निजी नौकरी करने वाले तो 24 x 7 केवल नौकरी के ही होकर रह गए थे। आधुनिक परिवेश पूर्ण रूप से हावी था।  ये लोगों की विवशता भी थी कि बदलते परिवेश में अपने को ढालें या पिछड़े कहलाएं। सब कुछ तेज , फ़ोन से मोबाईल फ़ोन , स्मार्ट फ़ोन , सवारी गाड़ियों और रेल गाड़ियों से हाई स्पीड ट्राई , बुलेट ट्रैन और न जाने कितने ही सपने लिए गतिमान जीवन।                इधर एक बहुत बड़ी हलचल वैश्विक पटल पर देखी जा सकती थी।  यूरोप , अमेरिका सहित सम्पूर्ण विश्व में एक नया रोग पैर पसार रहा था। धीरे -धीरे इस रोग ने आक्रामकता दिखानी प्रारम्भ की। सरकारें जागीं और रोकथाम का प्रयास किया जाने लगा। ये फैलाव और तेज हो रहा था।         ...

Braj 84 kos (ब्रज चौरासी कोस यात्रा ) - Brij Parikrama (बृज परिक्रमा)

ब्रज चौरासी कोस यात्रा अलग-अलग सम्प्रदायों द्वारा प्रति वर्ष आयोजित की जाती है जिसमें अनेकों श्रद्धालु देश और विदेश से सम्मिलित होकर चौरासी कोस की परिक्रमा करते हैं।  श्री कृष्ण ने जहाँ जहाँ भी अपनी लीलाएं ब्रज में की वे सभी लीला स्थलियाँ इस यात्रा में समाहित हैं जिनके दर्शन परिक्रमार्थी और भक्तगण इस दौरान करते हैं।                 बृज चौरासी कोस ( बृज परिक्रमा ): एक आध्यात्मिक यात्रा बृज चौरासी कोस एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक परिक्रमा है , जो भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा जिले में स्थित बृजभूमि के प्रमुख तीर्थ स्थलों को जोड़ती है। यह परिक्रमा 82 किमी के  क्षेत्र  में फैली हुई है और इसमें कुल 84 स्थान आते हैं , जहाँ भगवान श्री कृष्ण और उनके सखाओं ने विभिन्न लीलाएँ की थीं। इस परिक्रमा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यंत ही गहरा है। बृज चौरासी कोस का महत्व बृज चौरासी कोस का महत्व हिंदू धर्म में अत्यधिक है। इसे भगवान श्री कृष्ण की " लीलाओं " और " दर्शन " के स्थल के रूप में पूजा जाता है। यह परिक्रमा उन स्थानों...